फॉरवर्ड मार्केट और फ्यूचर्स मार्केट क्या है? फॉरवर्ड मार्केट और फ्यूचर्स मार्केट में क्या अंतर है

नमस्कार,
आज हम जानेंगे की फॉरवर्ड मार्केट और फ्यूचर्स मार्केट क्या है। फॉरवर्ड मार्केट और फ्यूचर्स मार्केट डेरीवेटिव मार्केट के टाइप्स है। डेरीवेटिव मार्किट के ४ टाइप्स होते है – Forward, Future, Options, and Swap।

डेरीवेटिव मार्केट क्या है ?

सबसे पहले समझते है की डेरीवेटिव मार्केट क्या होता है। पेट्रोल और डीजल क्रूड ऑइल से निकाले जाते है। तो वो क्रूड ऑइल के डेरीवेटिव है। दही, दूध से बनाया जाता है तो वो दूध का डेरीवेटिव है। जो भी चीज़ किसी चीज़ से डिराएव की जाती है यानि निकाली जाती है उसे डेरीवेटिव कहते है।
दो तरह के मार्केट होते है कॅश मार्केट और डेरीवेटिव मार्केट। कॅश मार्केट हमारा नार्मल मार्केट होता है जहां हम शेयर्स को buy और sell करते है। डेरीवेटिव मार्केट में आते है फ्यूचर्स और ऑप्शंस। कॅश मार्केट में आप जो भी शेयर्स buy और sell कर रहे हो उसे आप उस विशिष्ट दिन ट्रेड करते हो। वही डेरीवेटिव मार्केट में आप भविष्य के किसी दिन में buy या sell करने की डील यानि सौदा करते हो। इसका मतलब ये है की डेरीवेटिव मार्केट में आप फ्यूचर डेट में ट्रेड करते हो और कॅश मार्केट में आप प्रेजेंट डेट में ट्रेड करते हो। इन दोनों में यही मुख्य अंतर है।

दूसरा अंतर ये है की कॅश मार्किट में आप कितने भी शेयर्स खरीद या बेच सकते हो जैसे १ शेयर , २ शेयर्स, १०० शेयर्स या उससे भी ज्यादा। लेकिन डेरीवेटिव मार्किट में lots होते है। हर कंपनी के अपने अपने अलग lots होते है। और lots में ही आपको फ्यूचर्स और ऑप्शंस में ट्रेड करना होता है। lots यानि आप यहाँ १ , २, या अपनी मर्ज़ी के अनुसार शेयर्स नहीं खरीद सकते, आप एक समय कितने शेयर्स खरीद सकते हो ये कंपनी decide करती है। १ lots में कंपनी ५० , १००, २०० कितने भी शेयर्स रख सकती है।

जो कम्पनीज कॅश मार्केट में होती है वो सारी कम्पनीज फ्यूचर्स और ऑप्शंस में नहीं होती। फ्यूचर्स और ऑप्शंस में बहोत ही लिमिटेड कम्पनीज होती है और उन्ही कम्पनीज में आप ट्रेड कर सकते हो।

 

फॉरवर्ड मार्केट क्या है ?

इसे हम एक example से समझते है। आज की तारिख है १० दिसंबर और मानलो की आज सोने का भाव है ५०००० Rs / १० gram। लेकिन आपके पास ५० हज़ार रुपये आज नहीं है। १० जनवरी को आपके पास ५० हज़ार रुपये आएंगे। लेकिन सोना तो आपको आजके भाव पर ही खरीदना है क्यों की हो सकता है १० जनवरी को सोने के भाव बढ़कर ५२ या ५३ हज़ार हो जाए। इसीलिए आप एक जौहरी के पास जाते हो और उसे बोलते हो की आपको १० ग्राम सोना १० दिसंबर की कीमत पर खरीदना है लेकिन पैसे १० जनवरी को मिलेंगे। वो जौहरी उसे दूसरे जौहरी का पता देता है और कहता है की ये तुम्हे १ माह के पहले के कीमत पर सोना दे सकता है। इसके बाद आप उस जौहरी के पास जाते हो और अपनी शर्ते बताते हो। वो जौहरी उस डील के लिए तैयार हो जाता है। क्यों की उस जौहरी को लगता है की 10 जनवरी तक सोने की कीमत कम होगी। और १ माह के बाद सोना बेचने पर उसे फायदा होगा। आप दोनों ही अपना अपना फायदा सोचकर ये डील करते है की १० जनवरी को सोने की कीमत कुछ भी हो जौहरी आपको ५० हज़ार रुपयों में १० ग्राम सोना देगा। ये डील फ्यूचर में होगी। डील अपने आज की है जिसका १० जनवरी को कार्यान्वयन होगा। इसलिए इसे फॉरवर्ड मार्केट कहते है।

अब १० जनवरी आ जाती है आपके पास पैसे भी आते है
case १ – आप देखते हो की सोने की कीमत बढ़कर हो जाती है ५२ हज़ार रुपये। यानि जैसा अपने सोचा था वैसा हुआ। तो १० जनवरी को आप उस जौहरी के पास जाते हो। उसे डील के मुताबिक़ ५० हज़ार रुपये देते हो १० ग्राम सोना खरीदने के लिए। लेकिन वो जौहरी पलट जाता है। वो कहता है की आज सोने की कीमत ५२ हज़ार है। मैं आपको ५० हज़ार में नहीं दे सकता। आप उसे बोलते हो की हमारी डील हुई थी ५० हज़ार की आप ऐसा कैसे कर सकते हो। लेकिन वो जौहरी नहीं मानता और आप नाराज़ हो कर वहां से चले जाते हो। इस case में डील से आपको फायदा और उस जौहरी को हानि होने वाली थी क्यों की सोने की कीमत बढ़ गई थी। इसलिए वो जौहरी पलट गया और आपको भी फायदा नहीं हो पाया क्यों की डील पूरी नहीं हो पायी।

case २ – मानलेते है ३ जनवरी को सोने की कीमत गिरकर हो जाती है ४८ हज़ार रुपये। लेकिन आपकी डील ५० हज़ार रुपये में हुई थी। ये डील होती है तो आपको २ हज़ार रुपये का नुक़सान होगा। इसलिए आप उस जौहरी के नहीं जाते हो। इस case में जौहरी को फायदा हो रहा है और आपको नुक़सान। डील होने के बाद भी आपने नुक़सान होने के डर से वो पूरी नहीं की।

ये फॉरवर्ड मार्केट का एक example है। इसमें अपने और जौहरी ने मिलकर भविष्य के तारीख में एक डील की थी लेकिन इस डील में कोई बिचौलिया यानि बीच में डील पूरी होने की जिम्मेदारी लेने वाला आदमी नहीं था। डील में शामिल कोई भी default करता है तो उसपर एक्शन लेने वाला कोई नहीं है। न ही इस डील के लिए आपने कुछ deposit पैसे दिए थे। इसलिए ये डील पूरी न होने के चान्सेस ज्यादा रहते है। कोई भी कॉन्ट्रैक्ट छोड़ कर भाग सकता है।

फॉरवर्ड मार्केट में बहोत सारे प्रोब्लेम्स है। पहली बात तो ऐसी डील करने वाली पार्टी ढूंढना मुश्किल होता है। दूसरी बात ये है की इसमें default risk ज्यादा होती है। कोई भी पार्टी कॉन्ट्रैक्ट छोड़कर कभी भी भाग सकती है। इन सारे प्रोब्लेम्स को फ्यूचर्स मार्केट ने solve किया है। फ्यूचर्स मार्केट में कोई भी पार्टी कॉन्ट्रैक्ट छोड़कर भाग नहीं सकती।

फॉरवर्ड मार्केट और फ्यूचर्स मार्केट के बिच क्या अंतर है?

सबसे पहले हम फॉरवर्ड मार्केट और फ्यूचर्स मार्केट के बिच क्या अंतर है इसे समझते है।

१) फॉरवर्ड मार्केट में कोई भी middle man नहीं होता है , वही फ्यूचर्स मार्केट में स्टॉक एक्सचेंज middle man की तरह काम करता है।

२) फॉरवर्ड मार्केट में default risk होती है यानि काउंटर पार्टी contract छोड़के भाग सकता है। लेकिन फ्यूचर्स मार्केट में ऐसा होना संभव नहीं है। स्टॉक एक्सचेंजस(NSE) ने ऐसे नियम लागु किये है की कोई भी पार्टी contract छोड़कर भाग नहीं सकती। contract करने वाले दोनों पार्टी को स्टॉक एक्सचेंज को कुछ margin amount देनी पड़ती है। और ये margin amount पार्टी को होने वाले loss से हमेशा ज्यादा होती है। इस कारण loss होने के डर से किसीने contract छोड़ भी दिया तो उसे और ज्यादा नुकसान होगा।
उपर के उदाहरण में आप और जौहरी दोनों से कुछ margin amount ले ली जाए तो चाहे सोने का भाव बढे या घटे कोई भी contract छोड़के नहीं भाग सकता।

३) फॉरवर्ड मार्केट में आपको buyer या seller ढूंढने में खुद मेहनत करनी होती है। आपको खुद काउंटर पार्टी ढूंढनी होती है। लेकिन फ्यूचर्स मार्केट में ये काम स्टॉक एक्सचैंजेस करते है। अगर आप कोई फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीद रहे हो तो आपको फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट बेचने वाले खुद ढूंढने नहीं होंगे। स्टॉक एक्सचैंजेस आपके लिए ये काम करेंगे और आपके लिए फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट सेलर ढूँढ़के देंगे।

जब आप फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट खरीद ते हो तो ये आपको भी नहीं पता होता की आप किसके साथ डील कर रहे हो। आप सीधे स्टॉक एक्सचैंजेस पर आपके आर्डर डालते हो। Buyers और Sellers वह पर मिलते है और कॉन्ट्रैक्ट पूरा होता है। और साथ ही स्टॉक एक्सचैंजेस default risk और बाकि risk की गारंटी लेते है।

४) फॉरवर्ड मार्केट में आप कॉन्ट्रैक्ट cancel नहीं कर सकते। अगर आपको कॉन्ट्रैक्ट cancel करना है तो आपको उस पार्टी के पास जाकर request करनी पड़ती है की प्लीज हम ये कंस्ट्रक्ट cancel करते है। अगर सामने वाला आदमी इसके लिए तैयार होगा तो ही ये कॉन्ट्रैक्ट cancel हो सकता है। लेकिन फ्यूचर्स मार्केट में ये काम ये काम आसान है। बिना किसी फाइन या पेनल्टी के आप कभी भी अपना कॉन्ट्रैक्ट cancel कर सकते हो। अगर आपने कोई फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट लिया है तो उसके expiry से पहले उसे बेच सकते हो। तो इस तरह फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट्स के डील से आप कभी भी Exit कर सकते हो।

५) फॉरवर्ड कॉन्ट्रैक्ट customizable होते है इन्हे आप चाहे वैसा customize कर सकते हो। उपर के उदाहरण में आप १० ग्राम सोने की जगह आप १५ या २० ग्राम सोने की डील भी कर सकते हो या उससे ज्यादा की भी। आप डील होने की तारीख भी आगे या पीछे कर सकते हो। यानि आप और जौहरी दोनों मिलकर डील को customize कर सकते हो। लेकिन जब आप फ्यूचर्स कॉन्ट्रैक्ट करते हो तो उस कॉन्ट्रैक्ट को customize नहीं कर सकते। उस कॉन्ट्रैक्ट की size , expiry और बाकी चीज़े स्टॉक एक्सचैंजेस तय करते है। तो उन सारी चीज़ो के दायरे में ही डील करनी पड़ती है।

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